नागरिक विज्ञान क्रांति – प्रदूशन द्वरा होने वाले बीमारियों से कैसे बचें ?
प्रदूशन का हमारे स्वास्थ्य पर बूरा असर होता है ये सब जांते हैं, पर वास्तव मे हम इसपर क्या कर सकते हैं. आओ सब मिल्कर करे!
अच्चे स्वास्थ्य मे रेहना अपने आप मे मज़ेदार है, और जब हम बीमारियों से झूंझते हैं हमारे जीवन मे सुखून और काम करने की शक्ति कम हो जाती है.
उदाहरन बारिश मे पानी के भरने के साथ साथ सूक्ष्म जीवों की भी जनसंख्या बढ़ जाती है. इससे हमारे खाने की वस्तुएँ जल्दी सड़ जाते हैं जिसको खाने से हमे दस्त होता है. जब नाले प्लास्टिक के कचरे से भर जाते हैं तो गंदा पानी बाहर आता है और अपने साथ और कई सारे बीमारियों के स्रोत भी.
हम जो भी कचरों मे ज़हरीले पदार्थ फेंक देते हैं, जैसे मर्क्युरी (पारा) जो ट्यूब-लाइट और CFL बल्ब मे पाया जाता है, वो सब अम्लीय वर्षा के वजह से रास्तों के और नालों के और यहाँ तक की पीने के पानी मे भी फैलने लगता है. पारा कर्क रोग, त्वचा विकृति और यहाँ तक की मानसिक विकार का भी कारण हो सकता है.
इन सब के उपर बदते गीले कचरे और पानी के वजह से मच्छरों का आतंक और उनके साथ आने वाली मलेरिया!
क्या इन सबका कोई सरल बचाव तरीके ?
आसान विज्ञान नागरिक वैज्ञानिक क्रांति मे आपका स्वागत है. बारिश मे बीमारियों से बचने और दूसरों को बचाने के लिए वैज्ञानिक तरीकों को अपनाएँ.
१) घर के अंदर अलो वेरा के पौधे लगाना
- अलो वेरा का पौधा हवा मे कार्बन डाइयाक्साइड को अपने अंदर लेकर ऑक्सिजन देता है. इससे मच्छरों का आना भी कम हो जाता है. वो हवा मे कॅन्सर पैदा करने वेल ज़हरीले गैसों को भी कम करता है,
जो की हमारे रसोई घरों से और टाय्लेट से अक्सर निकलती है. अपने घर के हर कमरे मे अलो वेरा लगाएँ और सॉफ हवा का आनंद ले. - अलो वेरा के चमड़े को काटकर उसके अंदर के चिपचिपे जेल को अपने त्वचे मे लगा सकते हैं और मच्छर से खुद को बचा सकते हैं. अगर अलो वेरा जेल का उपयोग करेंगे तो कोई शॅमपू या स्किन क्रीम की ज़रूरत नही!
- अलो वेरा जेल को आप खा भी सकते हैं जो की विटामिन A,C, E और B12 से संपूर्ण है.
- और वैसे भी अलो वेरा को ज़्यादा पानी पसंद नही, तो क्यों ना उनको भी बारिश से बचाएँ और अपने घर के हर कमरे को भर दें ? एक नये हरित क्रांति का शुरुआत अपने घरों से ही शुरू करें!
२) प्लास्टिक का वर्गीकरण और संग्रह
हमारे शहरों मे नालों मे पानी भरके बाहर निकालने का कारण है प्लास्टिक. इसीलिए घर के सभी प्लास्टिक कचा जैसे दूध की थैली, चिप्स बिस्कुत के पॅकेट, आदि को एक प्लास्टिक के बॉटल मे घुसा घुसा के भर दें. हर घर से लगभग २ किलो हर महीने प्लास्टिक निकलता है. पुणे शहर मे इसका उपयोग फिर से तेल जैसे इर्धन बनाने मे उपयोग हो रहा है तो क्यों ना हम मुंबई मे भी इसे शुरू करें?
३) पुराने CFL और ट्यूब लाइट का सही रूप से नियंत्रण
पुराने CFL और ट्यूब लाइट मे मर्क्युरी (पारा) होता है जो की कर्क रोग, त्वचा विकृति और यहाँ तक की मानसिक विकार का भी कारण है, उसे अलग से संग्रह करें. ट्यूब लाइट को आप ईको रेको कंपनी (1800 102 1020) से संपर्क करके भेज सकते हैं. CFL के नियंत्रण के लिए मुझे 9029096196 मे वटसपप करें.
४) गीले कचरे से खाद
गीले कचरों का फेका जाना अपने आप मे बीमारियों का जड़ है, क्योंकि बारिश मे मखकी मच्छर जो बीमारियाँ फैलते हैं वो गीले कचरे को ख़ाके पनपते हैं. घर मे गीले कचरे को खाद मे बदलने के लिए एक ५० लिटेर प्लास्टिक का बकेट लें और इसमे मिट्टी भर दें. जब भी रसोई घर से सबजीतों के छिलके, चाय के पत्ते, आदि निकलता है तो उसी इस डब्बे के अंदर मिट्टी मे दफ़ना दें. इससे आपको हर ३ महीने मे खाद से संपूर्ण अच्छी मिट्टी मिलेगी जोकि पेड़ लगाने काम आएगा.
विज्ञान का असली मज़ा पढ़ लिखकर नंबर लाने मे नही है, बल्कि उससे मिलने वाले ज्ञान से ज़िंदगी को बेहतर और रोग मुक्त बनाने मे है. आशा है आप भी उपर दिए चार प्रयोग करें और बीमारिओं से बचें और अच्चे स्वास्थ्य का आनंद लें!